अपने बनारस के इतिहास को जानिये
अतीत काल से ही इस पुरातन नगरी काशी, वाराणसी अथवा बनारस का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसके बारे में अनेक लोगों द्वारा समय-समय पर कहा जाता रहा है। आज बनारस अपने पुरातन स्वरूप से अधुनातन स्वरूप की ओर तेजी से परिवर्तित हो रहा है। ऐसी स्थिति में इस शहर के प्रति अनेक भ्रान्तियों ने भी जन्म लेना शुरू कर दिया है। अचानक आई प्राकृतिक आपदा करोना से भी इस शहर की परिस्थितियां बदलीं हैं, या बदल रहीं हैं, जिससे आज की नवीन पीढ़ी इस शहर को मात्र एक मौज-मस्ती के शहर के रूप ही जान रही है, जिससे इसके वास्तविक इतिहास का महत्व गौण होता जा रहा है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि इस शहर के अतीत के कतिपय महत्वपूर्ण बिन्दुओं के माध्यम से नयी पीढ़ियों को सही जानकारी दी जाय।प्राप्त स्त्रोतों द्वारा उन्हें क्रमवार अवगत कराने का यह एक लघु प्रयास ही है।
मार्क ट्वेन ने लिखा है कि “वाराणसी इतिहास से भी प्राचीन है, परम्परा की दृष्टि से भी अतिशय प्राचीन है और मिथकों से कहीं अधिक प्राचीन है और यदि तीनों (इतिहास, परम्परा और मिथक) को एक साथ रखा जाए तो यह उससे दोगुनी प्राचीन है।” प्रस्तुत है अतीत के आईने में झाँकते हुए काशी से जुड़ी प्रमुख तिथियों एवं घटनाओं का विवरण-
द्वापर युग में काशी के राजा शौन हौत्र थे जिनके तीसरी पीढी में जन्मे दिवोदास भी काशी के राजा हुये।
9वीं सदी, ई0पू0 – शंकराचार्य की काशी-यात्रा और ‘शंकरदिग्विजय’ तथा ‘ब्रह्मसू-भाष्य’ की रचना।
816 ई0पू0 – आदि जगदगुरू शंकराचार्य का काशी में आगमन हुआ।
800 ई0पू0 – राजघाट (वाराणसी) में प्राचीनतम बस्ती और मिट्टी के तटबंध के पुरावशेष
8वीं सदी ई0पू0 – तेईसवें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का काशी में जन्म।
7वीं सदी ई0पू0 – काशी-एक स्वतंत्र महाजनपद।
625 ई0पू0 – काशी सारनाथ में सर्वप्रथम भगवान बुद्ध ने बौद्धधर्म का उपदेश दिया था।
405 ई0पू0 – चीनी यात्री फाह्यान का काशी में आगमन हुआ।
340 ई0पू0 – सम्राट अशोक की वाराणसी-यात्रा। सारनाथ में अशोक-स्तंभ और धम्मेख तथा धर्मराजिक स्तूपों की स्थापना।
1 ई0 से 300 ई0 – राजघाट के पुरावशेषों के आधार पर वाराणसी के इतिहास में समृद्धि का काल।
सन् 302 – मणिकर्णिका घाट का निर्माण हुआ था
सन् 580 – पचगंगा घाट का निर्माण हुआ।
12वीं सदी – काशी पर गहड़वालों का शासन। गहड़वाल नरेश गोविन्दचंद्र के राजपंडित दामोदर द्वारा तत्कालीन लोकभाषा (कोसली) में उक्तिव्यक्ति प्रकरण की रचना। गोविंदचंद्र की रानी कुमारदेवी ने सारनाथ में विहार बनवाया। गहडवाल युग में काशी के प्रधान देवता अविमुक्तेश्वर शिव की विश्वेश्वर में तब्दीली।
सन् 1193 – काशीराज जयचंद की मृत्यु।
सन् 1194 – कुतुबुद्दीन का काशी पर आक्रमण हुआ, जिसने विष्णु-मंदिर को तोड़कर ढाई कंगूरे की मस्जिद बनवा दी।
सन् 1194 व 1197 – काशी पर शहाबुद्दीन और कुतुबुद्दीन ऐबक के हमले। काशी की भारीलूट। गहडवालों का अंत।
सन् 1248 – दूसरी बार मुहम्मद गोरी का आक्रमण हुआ।
सन् 1393 – माघ शुक्ल पूर्णिमा को काशी में रविदास का जन्म हुआ।
सन् 1516 – फरवरी माह में चैतन्य महाप्रभु का काशी में आगमन हुआ, जहाँ पर ठहरे थे वह स्थान चैतन्य वट के नाम से प्रसिद्ध है।
सन् 1526 – बाबर ने इब्राहीम लोदी को पराजित करने के बाद काशी पर भी आक्रमण किया।
सन् 1531 – बनारस व सारनाथ में हुमायूं का डेरा।
सन् 1538 – बनारस पर शेरशाह की चढ़ाई।
सन् 1553 – सिख सम्प्रदाय के प्रथम गुरु श्री गुरूनानक देव जी का काशी आगमन हुआ और काशी में कई वर्ष़ों तक ठहरे थे। यह स्थान आज गुरुबाग के नाम से प्रसिद्ध है।
सन् 1565 – काशी पर बादशाह अकबर का कब्जा।
सन् 1583-91 – प्रथम अंग्रेज यात्री रॉल्फ फिच की वाराणसी-यात्रा।
सन् 1584 – काशी में ज्ञानवापी स्थित प्राचीन विश्वेश्वर मन्दिर का निर्माण दिल्ली सम्राट अकबर के दरबारी राजा टोडरमल के द्वारा हुआ।
सन् 1585 – राजा टोडरमल और नारायण भट्ट की मदद से विश्वनाथ मंदिर का पुननिर्माण।
सन् 1600 – राजा मान सिंह द्वारा काशी में मानमंदिर और घाट का निर्माण।
सन् 1623 – सोमवंशी राजा वासुदेव के मंत्री नरेणु रावत के पुत्र श्री नारायण दास के दान से काशी में मणिकर्णिका घाट स्थित चक्रपुष्करणी तीर्थ का निर्माण हुआ।
सन् 1642 – विंदुमाधव मन्दिर ( प्रथम ) का निर्माण जयपुर के राजा जयसिंह द्वारा हुआ।
सन् 1656 – दारा शिकोह की बनारस यात्रा।
सन् 1666 – औरंगजेब की आगरा-कैद से भागकर छत्रपति शिवाजी कुछ दिन काशी में ठहरे।
सन् 1669 – औरंगजेब के आदेश से विश्वनाथ मंदिर गिरा कर उसके स्थान पर ज्ञानवापी की मस्ज़िद उठा दी गई। बिंदुमाधव का मन्दिर भी गिराकर वहां मस्जिद बनाई गई।
सन् 1669 – औरंगजेब के समय में उसकी आज्ञा से ज्ञानवापी का विश्वेश्वर मन्दिर तोड़ा गया।
सन् 1669 – छत्रपति शिवाजी आगरे के किले से औरंगजेब को चकमा देकर कैद से निकल कर सीधे काशी आये। यहाँ आकर पंचगंगा घाट पर स्नान किया।
सन् 1673 – काशी में औरंगजेब द्वारा बेनी माधव का मन्दिर तोड़ा गया।
सन् 1699 – आमेर के महाराज सवाई जयसिंह ने काशी में पंचगंगा घाट पर राम मन्दिर बनवाया था।
सन् 1714 – गंगापुर ग्राम में कार्त्तिक कृष्ण पक्ष में काशीराज महाराज बलवन्त सिंह का जन्म हुआ।
सन् 1725 – काशी राज्य की स्थापना।
सन् 1734 – नारायण दीक्षित पाटणकर का वाराणसी आगमन; उन्होंने यहां कई घाट बनवाए।
सन् 1737 – महाराजा जयसिंह नें मानमन्दिर वेधशाला का निर्माण कराया।
सन् 1740 – बलवन्त सिंह के पिता श्री मनसाराम का देहावसान हो गया।
सन् 1741-42 – गंगापुर में तत्कालीन काशीराज द्वारा दुर्ग का निर्माण कराया गया।
सन् 1737 – सवाई जयसिंह द्वारा मानमंदिर- वेधशाला की स्थापना।
सन् 1747 – राजा बलवन्त सिंह ने चन्देलवंशी राजा को पराजित कर विजयगढ़ पर अधिकार किया।
सन् 1752 – काशीराज बलवंत सिंह द्वारा रामनगर किले का निर्माण।
सन् 1754 – महाराज बलवन्त सिंह ने पलिता दुर्ग पर विजय पाया।
सन् 1755 – बंगाल, नागौर राज्य की रानी भवानी के द्वारा पंचक्रोशी स्थित कर्दमेश्वर महादेव के सरोवर का निर्माण हुआ।
सन् 1756 – रानी भवानी ने भीमचण्डी के सरोवर का निर्माण करवाया।
सन् 1770 – 21 अगस्त को महाराज बलवन्त सिंह का स्वर्गवास हुआ।
सन् 1770 -81 – काशी पर महाराज चेतसिंह का शासन था।
सन् 1777 – महारानी अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर का नवनिर्माण कराया।
सन् 1781 – 16 अगस्त को काशी में शिवाला घाट पर अंग्रेजी सेना से राजा चेतसिंह के सिपाहियों का संघर्ष हुआ। यह विद्रोह राजभक्त नागरिकों द्वारा मारे गये।
सन् 1781 – अगस्त में काशी की देश भक्त जनता की क्रांति से भयभीत होकर वारनेहेस्टिंग्स जनाने वेश में नौका द्वारा चुनार भाग गया।
सन् 1781-94 – काशी राज्य पर महाराज महीप नारायण का राज्य था।
सन् 1785 – काशी में महारानी अहिल्या बाई द्वारा विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण हुआ।
सन् 1787-95 – जोनाथन डंकन बनारस के रेजिडेंट।
सन 1787 – काशी में प्रथम बार भूमि का बन्दोबस्त मिस्टर डंकन साहब के द्वारा हुआ जो डंकन बन्दोबस्त के नाम से जाना जाता है।
सन् 1791 – वाराणसी में संस्कृत पाठशाला (अब संस्कृत विश्वविद्यालय) का प्रस्ताव जोनाथन डंकन ने रखा था।
सन् 1794 – काशी राजकीय संस्कृत विद्यालय (क्वींस कालेज) की स्थापना।
सन् 1802 – बनारस की पहली पक्की एवं मुख्य सड़क दालमण्डी, राजादरवाजा, काशीपुरा, औसानगंज होते हुये जी.टी. रोड तक बनाई गई।
सन् 1814 – बनारस में लार्ड हेस्टिंग्स का आगमन और दरबार।
सन् 1816 – पश्चिम बंगाल के राजा जयनारायण द्वारा रेवड़ी तालाब मुहल्ले में अंग्रेजी भाषा के प्रथम विद्यालय ’जयनारायण हाईस्कूल’ (वर्तमान में यह इण्टर कालेज) की स्थापना।
सन् 1818 – काशी के अस्सी मुहल्ले में रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ।
सन् 1820 – वर्तमान न्यायालय भवन (कलेक्ट्री कचहरी) का निर्माण हुआ।
सन् 1822 – जेम्स प्रिंसेप ने बनारस का सर्वेक्षण किया।
सन् 1825 – बाजीराव पेशवा द्वितीय ने कालभैरव मन्दिर का निर्माण कराया।
सन् 1827 – फारसी शायर मिर्जा गालिब का काशी में आगमन, जो वर्तमान घुघरानी गली में ठहरे थे।
सन् 1828 – ज्ञानवापी के खंडित सरोवर की रक्षा हेतु ग्वालियर रानी बैजबाई ने एक कूप बनवाया।
सन् 1828-29 – जेम्स प्रिंसेप द्वारा बनारस की जनगणना; कुल आबादी-1,80,000
सन् 1830 – विश्वेश्वरगंज स्थित गल्ला मण्डी (अनाज की सट्टी) का निर्माण हुआ।
सन् 1835 – काशीराज महाराज ईश्वरी नारायणसिंह राज्य पर बैठे तथा 1889 में उनका स्वर्गवास।
सन् 1839 – पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा काशी विश्वनाथ मन्दिर के कलश पर स्वर्ण-पत्र-चढ़ाया गया।
सन् 1845 – बनारस का पहला सप्ताहिक समाचार पत्र ’बनारस’ प्रकाशित हुआ।
सन् 1853 – वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन का निर्माण पूरा हुआ।
सन् 1866 – काशी म्यूनिसिपल बोर्ड (नगर पालिका) की स्थापना हुई।
सन् 1867 – काशी में प्रथम बार चुंगी (कर) लगी।
सन् 1869 – 22 अक्टूबर को काशी में स्वामी दयानन्द सरस्वती का आगमन हुआ। दुर्गा कुण्ड पर राजा माधव सिंह बाग में विद्वानों से शास्त्रार्थ हुआ।
सन् 1872 – कमिश्नर सी.पी. कारमाइकल के नाम पर ज्ञानवापी में लाइब्रेरी की स्थापना।
सन् 1875 – कुँवर विजयनगरम् श्री गजपति सिंह के द्वारा टाउनहाल का निर्माण हुआ। जिसका उद्घाटन सन् 1876 में प्रिस ऑफ वेल्स के द्वारा हुआ।
सन् 1880-87 – राजघाट पुल (डर्फिन ब्रिज) का निर्माण हुआ।
सन् 1882 – नागरी प्रचारिणी सभा पुस्तकालय एवं बंग साहित्य पुस्तकालय की स्थापना।
सन् 1882 – काशी में गंगा की अधिक बाढ़ हुई थी। कोदई-चौकी तक नावें चली थीं।
सन् 1885 – काशी में कांग्रेस कमेटी की स्थापना हुई। इसकी प्रथम बैठक रामकली चौधरी के बाग में हुई थी। जिसके सदस्य डॉ0 छन्नू लाल, बसीउद्दीन मुख्तार, मु0 माधोलाल, उपेन्द्रनाथ, वृन्दावन वकील थे।
सन् 1887 – राजघाट स्थित गंगा पर रेल-सड़क पुल का उद्घाटन।
सन् 1888 – काशी यात्रा के लिये स्वामी विवेकानन्द का आगमन हुआ।
सन् 1889-31 – काशी राज्य पर महाराज प्रभुनारायण सिंह का राज्य था।
सन् 1890 – भेलुपुर स्थित जल संस्थान का महारानी विक्टोरिया के पौत्र प्रिंस एलबर्ट विक्टर द्वारा शिलान्यास।
सन् 1891 – सारनाथ में अनागारिक धर्मपाल द्वारा महाबोधि संस्था स्थापित हुई।
सन् 1892 – 14 नवम्बर को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के गवर्नर द्वारा भेलुपुर जल संस्थान का उद्घाटन।
सन् 1893 – ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना।
सन् 1897 – पादरी जानसन के द्वारा काशी में गिरजाघरों का निर्माण हुआ। प्रथम-सिगरा, दूसरा-गोदौलिया का।
सन् 1898 – आर्यभाषा पुस्तकालय की स्थापना।
सन् 1904 – तत्कालीन काशी नरेश की अध्यक्षता में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना के लिये पहली बैठक हुई।
सन् 1910 – काशी में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई।
सन् 1910 – सारनाथ संग्रहालय का निर्माण कराया गया।
सन् 1916 – पं0 मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना।
सन् 1918 – काशी में प्रथम सिनेमा घर का निर्माण बैजनाथ दास शाहपुरी द्वारा बांसफाटक पर मदन थियेटर के नाम से हुआ।
सन् 1920 – काशी विद्यापीठ की स्थापना।
सन् 1920 – महात्मा गांधी काशी में आये और तीन दिनों तक ठहरे।
सन् 1920 - भारत कला भवन, संग्रहालय की स्थापना, बाद में सन् 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का अंग बना।
सन् 1921 – 10 फरवरी को गांधी जी का पुनः काशी आगमन हुआ। तीसरी बार 1921 में उन्होंने विद्यापीठ का शिलान्यास किया।
सन् 1925 – 26 दिसम्बर को काकोरी षडयन्त्र के सम्बन्ध में वाराणसी में अनेक लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसमें काशी के राजेन्द्र लाहिड़ी को फाँसी दी गयी।
सन् 1928 – वाराणसी मे बिजलीकरण।
सन् 1931 – जून मे प्रथम बार नेता जी सुभाषचन्द्र बोस का आगमन हुआ। दशाश्वमेध स्थित चितरंजन दास पार्क में अभिमन्यु दल द्वारा मानपत्र दिया गया। टाउनहाल के मैदान में नव जवान भारत सभा की ओर से एक सभा हुई।
सन् 1933-34 – रिक्शे की सवारी की शुरुआत ‘दी रेस्टोंरेंट’ के मालिक बद्री बाबू नें की।
सन् 1934 – 13 जनवरी को काशी में भूकम्प आया।
सन् 1934 – 28 दिसम्बर को राजा बलदेव दास बिड़ला के दान से सारनाथ में एक धर्मशाला का निर्माण हुआ।
सन् 1937 – ‘भारतमाता मन्दिर’ का महात्मा गांधी द्वारा उद्घाटन।
सन् 1939 – काशी राज्य में प्रजा की माँग पर काशी नरेश श्री महाराज आदित्य नारायण सिंह ने प्रजा परिषद की घोषणा की।
सन् 1940 – राजघाट (वाराणसी) के उत्खनन की शुरूआत।
सन् 1948 – 15 अक्टूबर को बनारस राज्य का भारतीय संघ में विलय हुआ।
सन् 1956 – बुद्ध-पूर्णिमा के दिन ‘बनारस’ को अधिकृत रूप से पुराना ‘वाराणसी’ नाम दिया गया।
सन् 1964 – तुलसी मानस मन्दिर (दुर्गाकुण्ड के पास) का निर्माण हुआ।
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