व्योमवार्ता / छात्र जीवन की दोस्ती : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 27अगस्त 2018
वो भी क्या दिन थे.
बीएचयू के पेड़ो तले अनायास ही ,
साइकिल खड़ी कर ढेरो अनायास बातें,
वीटी के समोसे पर नमक जीरा वाला मसाला,
गुपुत नाथ की दुकान पर झटका दे,
चार चाय के पैसे मे छ: चाय,
स्कालरशिप के पैसे से
एट्टीज के डोसे व काफी,
लंका पर काशी के यहॉ कट वाली चाय,
नई चीजे खरीदने पर बाबा जी की कोल्ड काफी,
एग्रो मे छोला भठूरा,
बिड़ला के सामने धूंये से काले हो चुके
दोनो भाईयों की ताजी, भुनी मूंगफलियॉ,
हेल्थ की बातें चलने पर दो चार दिन
अस्सी पर पहलवान का फेंटेदार दूध,
और अस्सी घाट की सीढ़ीयो व चौतरे पर,
चना जोर गरम वाला भूजा.
अस्सी तिराहे पर चचियवा की मीठी गाली
साथ मे चटक मिक्स रसेदार तरकारी
और करारी कचौड़ियॉ,
मंगल, शनिचर को बिना भक्ति के भी
ऑख सेकने के लिये नियमित संकटमोचन,
बिना किसी रिश्ते के सर सुन्दर लाल मे
मरीजों के लिये सहायक बनना
ईमानदारी से चीजो का बंटवारा
अमेरिकन स्टाईल मे सिनेमा देखना.
किसी एक का काम होने पर
पूरे ग्रुप का सेन्ट्रल आफिस जाना,
एक दूसरे से होड़ मे देर देर तक
सेन्ट्रल लाईब्रेरी बैठ कर पढ़ना.
पैसे कम थे पर प्यार ज्यादा,
सारी बाते याद आती है,
तब समय था पर पैसे नही,
ईच्छायें थी पर साधन नहीं,
अब सब बिखर गये हैं,
अपनी अपनी दुनिया मे,
सभी व्यस्त है,
जीवन की अपनी आपाधापी मे,
अब चाह कर भी नही हो पाती
वे सारी बातें, मस्ती, और मजे,
अब पैसा है पर समय नही है.
परीक्षा नही है पर ढेरो टेन्सन है.
फिर भी फेसबुक व्हाट्सऐप्प पर ही सही
हम एक दूसरे को याद तो कर लेते है.
चलो मोबाईल, इण्टरनेट,
मेट्रो व बुलट के जमाने मे,
तेजी से बढ़ती जिन्दगी मे
एक दूसरे से कितने दूर हो गये है हम.
फिर भी एक दूजे के दिलो मे
बसेे है ढेर सारे प्यार,
अहसास व यादों के साथ.
क्या ये ही कम है.
दोस्ती जिन्दाबाद...
(बनारस, 27 अगस्त 2018, सोमवार)
http://chitravansh.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें