प्रो0 परमानंद सिंह का जाना, एक समाजवादी चिन्तक की विदाई : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 13 अगस्त 2017, रविवार
रात के सवा नौ बज रहे हैं हम लोग काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर गंगा किनारे खड़े चिता की जलती लाल लपटों को देख रहे हैं चिता पर रखी परम आदरणीय प्रोफैसर परमानंद सिंह जी की पार्थिव शरीर जो आज संसार बंधनों से मुक्त होकर परम निद्रा में विलीन हो गई, सुबह 9:00 बजे के आसपास आदरणीय वेद प्रकाश भैया का संदेश मिला की गुरुजी प्रो0 परमानंद जी नहीं रहे ,सुनकर एक धक्का सा लगा अभी पिछले हफ्ते ही तो मैं विचार कर रहा था उनके यहॉ जाने के लिये, फोन किया घंटी बजती रही पर फोन नहीं उठा, लगा कि हो सकता है कहीं व्यस्त हो या शहर के बाहर हो. आज यह दु:खद जानकारी मिली कि एपेक्स अस्पताल में भर्ती गुरु जी के इस जीवन लीला का अंत हो गया . प्रो0 परमानंद सिंह जी से मेरा बहुत पुराना परिचय नहीं था , महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से कोई संबंध न होने के वजह से मै उनके व अध्यापन से भी परिचित नही था, डॉ0 शंभुनाथ सिंह रिसर्च फाउण्डेशन मे आते जाते मै उन्हे देखता था वहीं से उनके महान व्यक्तितव व कृतित्व की जानकारी मिली, फाउंडेशन की कार्यकारिणी मे आ जाने के पश्चात भी परंतु उनके धीर-गंभीर व्यक्तित्व के आगे कभी खुद को उनके समक्ष प्रस्तुत करने का साहस नहीं कर सका पिछले साल जून में वेद प्रकाश भैया का फोन मिला की प्रो0 परमानंद सिंह जी से मिल लो कुछ उनका व्यक्तिगत कार्य है . वेदप्रकाश भैया दैनिक जागरण के पूर्व उप संपादक रहे है और हम जैसे कितनो के लिये बड़े भाई समान संरक्षक, जो डॉटते भी है और फिर साथ बैठ कर मित्र की भूमिका भी निभा देते हैं. वेद प्रकाश भैया का आदेश था तो मेरे लिये टालना असंभव था. और 15- 16 जून 2016 के आसपास मैं बैजनत्था स्थित गुरुजी की आवास पर गया , गुरू जी स्वयं अस्वस्थ होने के बावजूद अपने अपार्टमेंट के नीचे ही सड़क पर हमारा इंतजार कर रहे थे. मेरे लिये उन के भव्यतम व्यक्तित्व के लिये जो संबोधन निकला वह 'सर' का था, बातें समझी और फिर दिनोदिन हम लोगों के संबंध प्रगाढ़ होते गए और वे मेरे और सूर्यभान के लिये अंत तक सर ही रहे. उनसे मिलकर एक स्नेह ,एक आदर ,एक विचारधारा , एक उर्जा व उनके अनुभवों की जो थाती प्राप्त होती थी वह अब कभी नहीं प्राप्तहो सकेगी , दुऱ्भाग्यत: जब मुझे सर का सानिध्य प्राप्त हुआ तब तक उनकी आवाज समाप्त हो चुकी थी गले के कैंसर के कारण उनका वोकल कार्ड निकाल कर उन्हें बोलने वाली मशीन लगाई गई थी जिसके माध्यम से हम उनसे बात करते थे कभी-कभी मैं सोचता था की इतने बड़े समाजवादी विचारक ,उर्जावान नेता , काशी विद्यापीठ छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष व अध्यापक संघ के पूर्व अध्यक्ष और अपने पीछे अनुकरण करने वालों की एक लंबी तादाद वाली शिष्य मंडली को निर्देशित करने वाले गुरुजी बोलने के लिये कितना कष्ट व कितना असहज महसूस करते होंगे अगर सरस्वती के पुत्र से मां सरस्वती का माध्यम वाणी ही हर लिया जाए वाली स्थिति मे उनकी विवसता को महसूस किया जा सकता है परंतु गुरु जी ने कभी इस बात की शिकायत नहीं किया. पिछले 1 वर्षों में पनपे हमारे अति आत्मीय संबंधो ने हमें एक दूसरे के बहुत करीब ला दिया था .प्रोफ़ेसर परमानंद सिंह जी भले इतिहास के अध्यापक थे परंतु साहित्य ,राजनीति और संस्कृति में भी उनकी गहरी पकड़ थी. हमारे जैसों के लिये तो वे बौद्ध इतिहास के इनसाइक्लोपीडिया थे. पर यह उनके बेबाक विचारस्वतंत्रता ही थी कि वे विचारधारा, जाति, धर्म, परिवेश व प्रभाव के बंधन से मुक्त अपनी बातों को स्पष्ट रूप से रखते थे. उत्र प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017के पूर्व एक दिन बैठे-बैठे प्रदेश की राजनीति पर चर्चा चलने लगी, गुरूजी ने बिना लाग लपेट के कहा कि बनारस की सारी सीटें भाजपा जीतेगी और इस बार मोदी उत्तर प्रदेश में 300 प्लस का अपना लक्ष्य प्राप्त करेंगे .मेरे साथ साथ उनके अपार्टमेंट के ही पड़ोसी अनिल शर्मा जी भी बैठे थे साथी मेरे मित्र सूर्यभान भी थे ,हम लोगों ने भाजपाई होने के बावजूद सर से इत्तेफाक न रखते हुए कहा कि हमें लगता है कि बनारस में पांच सीटें भाजपा जीतेगी परंतु वह अपनी बात पर अड़े रहे और एक महीने बाद होने वाले चुनाव में उनकी बातों को सच भी कर दिखाया .यह थी उनकी राजनीतिक समझ, वह समाजवादी विचारक होने के बावजूद राजनीति के सत्य को बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार करते थे .
आज सुबह-सुबह मिली खबर को राजीव भैया से शेयर किया तो यह जानकारी मिली की पहले गुरुजी के पार्थिव शरीर को उनके पैतृक घर गुरेहठा आजमगढ़ ले जाएंगे और वहां से वापस बनारस आ कर मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार होगा . अद्यतन स्थिति जानने के लिये सर के नंबर वाले WhatsApp अकाउंट पर देखा तो गुरुजी के बारे में शायद प्रज्ञा ने शेयर किया था " चिरनिद्रा में विलिन ! अंतिम यात्रा की ओर प्रस्थान प्रातः ०८.०० बजे सुबह ". थोड़ी देर पहले तक सर को चिरनिद्रा मे और अभी जब चिता पर उन्हें लेटे अग्नि मे समर्पित होते हुये देख रहा हूं तो सोच रहा हूं कि हॉ, यह निद्रा ही तो है पर इस चिर मे अंतर सिर्फ इतना ही तो है कि जहां से सर फिर कभी नहीं जागेगें, न ही वापस आएंग. मेरे साथ वेदप्रकाश भैया, डा0 बेनी माधव, राजीव भैया, डा0 सीमान्त, सूर्यभान, अजय और ढेर सारे लोग श्रद्धावनत हो गुरू जी के पार्थिव काया को पवित्र अग्नि मे भस्मीभूत होते देख रहे हैं. और मै भीड़ मे खड़े हो कर भी नम ऑखो से बरसात मे ऊफनाती हुई गंगा के लहरो पर उछलते जल प्रवाह मे वाराणसी के महान जीवन्त सामाजिक विचारक की स्मृतियॉ तलाशने की कोशिश कर रहा हूँ जो अपने साथ एक विचारधारा ही नही बल्कि एक पीढ़ी की थाती समेटे विलीन हो रही है. आप बहुत याद आयेगें सर, इस एक वर्ष के ही सानिध्य मे आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला और बहुत कुछ सीखना बाकी था पर.....
मै घाट से वापस चलते समय आदतन मोबाईल का स्टेटस चेक करता हूँ , सर के व्हाट्स ऐप्प एकाउण्ट की प्रोफाईल फोटो बदल गयी है, मूलगंध कुटी विहार सारनाथ के महाबोधि मंदिर की ओर अग्रसर सधी हुई चाल मे जाते हुये हमारे परम आदरणीय सर प्रो0 परमानंद सिंह जी, जैसे कह रहे हो "बुद्धम् शरणम् गच्छामि, संघम् शरणम् गच्छामि, धम्मं शरणम् गच्छामि."
मृत्यु से अमरत्व की ओर.......
(बनारस, 13 अगस्त 2017, रविवार)
http://chitravansh.blogspot.com
अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
सोमवार, 14 अगस्त 2017
व्योमवार्ता : प्रो0 परमानंद सिंह जी एक समाजवादी विचारक की विदाई : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 13 अगस्त 2017, रविवार
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें