नववर्ष का नव आवाहन
नव संवत्सर नव विहान
पेड़ो पर नवांकुरित होती नव कोंपले
नव ऊष्मा की पछुआ नव बयार
संक्राति को बेध कर नवआदित्य की नव ऊर्जा
आम्रवृक्षो पर ईठलाती नव मंजरियॉ
दौने की पत्तियों से ऊभरती नवसुगंध
नवउत्साह के साथ अलसाया मन
नव संकल्पों का अल्हड़पन
नवरात्रि व्रत से शान्त संकल्पित मन
ब्रह्मबेला मे पक्षियों का नव गुंजारपन
शात्विक विचार, शॉत चित्त
कुछ तो है जो देता है नवचिंतन
भारत के नववर्ष, साधारण नवसंवत्सर में.
(बनारस, 01 अप्रैल, 2017, शनिवार)
http://chitravansh.blogspot.in
अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
रविवार, 2 अप्रैल 2017
नवसंवत्सर 2074 विक्रमी, " साधारण" चैत्र शुकल नवरात्रि : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 01 अप्रैल 2017, शनिवार
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