क्या आपने कभी सोचा है?
पब्लिक स्कूलों मे पाठ्यपुस्तकों की सूची नही दी जाती क्योंकि अभिवावक कमीशन वाली दुकान के अतिरिक्त कहीं और से किताब न खरीद सकें.
मेरे एक मित्र ने बताया कि जो किताबे हम पब्लिक स्कूलों के कमीशनदात्रि दुकानों से दाम के दाम पर खरीदते है वे दिल्ली के पब्लिकेशन मार्केट मे छपे दाम से 40% कीमत पर मिल जाती है.
यानि नफा 60% . शुद्ध
पूरे मामले को एक उदाहरण से समझते है
बनारस के एक जाने माने पब्लिक स्कूल मे चलने वाली कक्षा 1 को लेते है. कुल 4 सेक्शन, एक सेक्शन मे 60 छात्र, यानि कुल 240. प्रवेश शुल्क मात्र 12000/- एवं पुस्तक मूल्य 3600/- कापीयॉ कवर सहित 1200/- यानि कुल 16800/-
बाकी सब को छोड़ केवल किताबों की ही चर्चा करें, 3600 रूपये की किताबो का वास्तविक मूल्य 1440/- मात्र, लाभ 2160/- दुकानदार ने स्कूल को कमीशन दिया बिक्री मूल्य का 30% यानि 1080/- रूपये.
कापियों के लिये तो अगर आप दिल्ली के बजाय कर्णघंटा चले जायें तो 1200/- वाली कुल कापियॉ आपको खुदरा मूल्य पर 720 से 780 रूपये मे मिल जायेगीं, यदि इसे रूपये 800/- भी मान ले तो दुकानदार का फायदा 400/- स्कूल को कमीशन गया 200/- रूपये.
यानि बैठे बिठायें, बिना हाथ पैर चलाये, बिना कुछ किये, बिना टेंसन के स्कूल के संचालक को 1280/- प्रति छात्र मिल रहा है. 1280 गुणा 240 कुल हुये 3,07,200/-
यह केवल कक्षा 1 का उदाहरण लिया गया है, बाकी कक्षाओं मे जैसे जैसे ऊपर चलेगें कमीशन की कमाई बढ़ती जायेगी. जो लगभग 50,00,000/- पचास लाख तक प्रतिवर्ष हो जाती है और यह विशुद्ध रूप से पब्लिक स्कूलो की काली कमाई है.
ड्रेस, बैग, जूता, बेल्ट, टाई, स्पोर्ट्स किट जैसे बाकी ताम झाम से अलग कमाई होती है जिसकी बेहिसाब कमाई अलग.
कोई रोक टोक नही....
http://chitravansh.blogspot.in(बनारस, 28 मार्च 2017, सोमवार)
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