शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

बैंक का एक कटु अनुभव : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 22अप्रैल 2016, शुक्रवार

22 अप्रैल 2016, शुक्रवार
बैंक का एक कटु अनुभव
          आज एक परिचित के साथ काशी गोमती संयुक्त ग्रामीण बैंक मीरापुर बसहीं शाखा, वाराणसी मे जाना हुआ। परिचित को कुछ पैसा निकालना था ताकि वे अपने बच्चो की फीस समय से जमा कर सकें। मुश्किल यह था कि नये सरकारी नियमो के अनुसार इस सप्ताह  में केवल दो दिन बैंक खुले थे। पहले महावीर जयन्ती फिर हजरल अली जयन्ती और चौथा शनिवार। बैंक मे भीड़ ठसाठस भरी थी और काउंटर पर बैठी दो महिला कर्मचारियो मे से एक तो हर बात पर दूसरी वाली मैडम से इंस्ट्रक्शन ले कर काम कर रही थी, शायद नई रही हो। पर दूसरी मैडम ग्राहको को भी लगातार तेज तेज आवाज मे इंस्ट्रक्शन ही दे रही थी। उनके लहजे मे व्यवसायिकता के बजाय डिक्टेटरशिप ज्यादा थी। बेचारी एक अधेड़ महिला ग्राहक ने अपने बारी की स्थिति जानने की कोशिस क्या किया, मैडम जी आपे से बाहर । अब वो बेचारी अधेड़ महिला यह जान ही नही पा रही थी कि उन्होने ऐसी क्या गलती कर दिया जिसके लिये उनकी पोती की उम्र की मैडम जी उन पर भड़क रही है? मुझसे आदतन नही रहा गया तो मैने पूछ ही लिया कि आखिर इस बात को सम्मानित व सांस्कारिक लहजे मे भी  कहा जा सकता है और यह शाखा अगर हैवी टर्नओवर की बैक ब्रॉच मानी जाती है तो उसमे कही हम ग्राहको का योगदान है। आप का होना हमारी मजबूरी नही है बल्कि ध्यान रखिये कि हमारा यहॉ न होना आपके लिये समस्या बन सकती है। मैडम जी ने पहले एक्सरे वाले निगाहो से हमे घूरा फिर पूछा आप बताइये आप क्यो खड़े है हम आपका काम कर देते है?
         मेरे यह बताने पर कि हम तो इस शाखा के ग्राहक ही नही बस परिचित के साथ आ गये है, मैडम जी की निगाहे मुझ पर उपेक्षित जैसे हो गयी। मुँह से तो उन्होने कुछ नही कहा पर उनकी नजरो मे हमे खुद के प्रति वितृष्णा साफ नजर आयी, "जाने कहॉ कहॉ से आ जाते है" वाली। और वे अपनी सीट छोड़ कर कैश केबिन मे बैठी अपनी सहकर्मी के पास जा बैठी। विलंब होने के कारण मेरे परिचित ने कहा कि चलिये अब शाम को देखेगें। कुछ जरूरी काम निपटा के हम लोग वापस ३.२५ पर वापस आये तो बैंक के शटर मे ताला लगा था, खटखटाने पर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने अंदर वाले शीसे के दरवाजे से हमे झॉका और बताया कि अब सोमवार को आइये, बैंक बंद हो चुका है। हमने दरियाफ्त किया कि अभी तो ३.२५ हो रहे है । कामकाज तो ३.३० तक लिखा हुआ है। चतुर्थ श्रेणी महोदय ने बेहद रूखेपन से जबाब दिया कि हम बैंक अपनी घड़ी से खोलते बंद करते है, आपकी घड़ी से नही। हमारी घड़ी मे साढ़े तीन बज गया है।
       अब हमारे पास कोई उत्तर ही नही था उन माननीय के जबाब का? परिचित बोले चलिये चला जाय, यहॉ ऐसी ही व्यवस्था चलती रहती है। मुझे किसी बैंक मे ही देखे महात्मा गॉधी के प्रचार वाली होर्डिंग याद आ रही थी कि ग्रहक हमारे लिये भगवान है ,अब अगर ऐसा व्यवहार बैंक कर्मियों का ग्राहक के प्रति है  तो ये क्या कहा जायेगा।
सारे प्रकरण को दूसरे नजरिये से भी देखते है। मीरापुर बसहीं शाखा अरेक्षाकृत दूसरी शाखाओ से ज्यादा भीड़भाड़ वाली शाखा है जहॉ अधिकतर कर्मचारी महिला है, छुट्टीयॉ के बाद बैंक खुलने से ग्राहको का थोड़ा दबाव बढ़ना स्वाभाविक है। आजकल के गर्मी के हालात मे चिढचिढाहट भी स्वाभाविक है पर क्या कुर्सी पर बैठ जाने के बाद हमारे अंदर की इतनी आदमियत भी नही रहनी चाहिये कि सामने खड़े अपने सम्मानित ग्राहक के उम्र व मजबूरी का भी लिहाज न करें? यह एक सोचनीय सवाल है।
आजकल बैंक वाले कहते है कि आप एटीएम कार्ड ले लो। पर क्या सभी  समस्यायो का जबाब सिर्फ एटीएम कार्ड है । मेरी व्यक्तिगत जानकारी मे अब तक जितने भी धोखाधड़ी की घटनाये एटीएम कार्ड के द्वारा हुई उनमे आज तक किसी भी जालसाज या अपराधी को नही पकड़ा जा सका। और तो और बैंक भी इस जालसाजी को पकड़ने मे कोई सकारात्मक रूख नही दिखाता। औरो की बात जाने दें मेरे पास कम से कम तीन चार बार फोन के द्वारा मेरा एटीएम पिन जानने के लिये फोन आये, हर बार मैने अपने बैंक को, पुलिस को और फेसबुक के पोस्ट के माध्यम से लोगो को उक्त फोन नंबर की व सारी घटना की जानकारी दिया पर न तो कभी बैंक ने न ही पुलिस ने उन नंबरो के छानबीन का प्रयास व कार्यवाही किया।
  जहॉ तक छुट्टीयों की हालत है बैंक अब उत्तर प्रदेश सरकार के परिषदीय विद्यालय जैसे हो गये हैं, हर छोटी छोटी बात पर छुट्टीयॉ । हर दूसरे व चौथे शनिवार की बंदी का औचित्य अभी तक हम नही समझ सके। अगर यही छुट्टीयॉ दूसरे शनिवार के बजाय पहले या तीसरे को होती तो दूसरे शनिवार को बंदी की सुविधा प्राप्त करने वाले ढेरो राजकीय कर्मचारी, अधिवक्ता एव अन्य लोग बैंक मे अपने कामकाज को उस दिन कर लेते लिहाजा तीसरे सोमवार को बैंक पर पड़ने वाला दबाव निश्चित ही थोड़ी कम होता।
पर हमारे देश मे नियमो को लागू करने से पूर्व कभी भी उनका व्यवहारिक औचित्य समझने का प्रयास ही नही किया जाता। परिणाम भीड़ व अव्यवस्था सिर्फ बैंक ही नही और जगह भी दिखती है। इसीलिये यहॉ दादी मॉ की उम्र की महिला अपने तीसरी पीढ़ी के उम्र वाली कर्मचारी से अनायास की डॉट खाती है और मुस्तंडा जैसा नवयुवक अपने संबंधो का अनुचित लाभ उठाते हुये काउंटर के अंदर बैठ अपना काम आसानी से करा लेता है व दूसरो के काम को प्रभावित करता है।

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