शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

जेएनयू प्रकरण पर बुद्धिजीवी प्रलाप -व्योमेश चित्रवंश

ऐ भाई।
पहले तो तुम ये तय करो कि तुम्हारी आस्था दरअसल है किसमें?
भारतीय संविधान व भारत राष्ट्र में
या
प्रो० गिलानी, कन्हैया,अफजल गुरू, उमर खालिद, हाफिज सईद,आई एसआइएस,अलकायदा वगैरह में?

क्योंकि अगर तुम यह कहते हो कि तुम्हे संविधान मे प्राप्त अभिव्यक्ति के मूल संवैधानिक अधिकारो का प्रयोग करने का पूरा हक है, तुम्हे भारतीय संविधान मे पूरा विश्वास है वगैरह वगैरह
तो
माफ करना
तुम झूठ बोलते हो।

क्योंकि
ये संवैधानिक अधिकार तुमने तब नही देखा
जब
इसी देश मे, इसी संविधान को मानने वाले काश्मीरी पंडित अपने घर से बेघर किये जा रहे थे।
जब
सीमा पार से आतंकी आकर हमारे देश के एअरबेस, हमारे शहरो, हमारे होटलो मे हमारे निर्दोष भाई बहनो को मार रहे थे।
जब
आरक्षण के नाम पर देश की प्रतिभायें अपने साथ हुये अन्याय से कुण्ठित हो कर खुद को आग के हवाले कर रही थी
जब
आम गरीब भारतीय रियाया के मेहनत की कमाई के अनुदान पर लगभग मुफ्त मे पढ़ाये जाने वाले मशहूर जेएनयू मे हमारे देश के टुकड़े कर देने की कामना वाले नारे लगाये जा रहे थे।
जब
देश के विकास नीधि का बंदरबॉट कर उन्हे घोटाला दर घोटाला मे तब्दील किया जा रहा था।
जब
माल्दा मुजफ्फरनगर मे आम नागरिको (धर्म से परे ) को मारा जा रहा था
जब
हिन्दुस्तान को बदनाम करने के लिये इसी संविधान व व्यवस्था के अन्तर्गत दिये हुये सम्मानो व पुरस्कारो को लौटाया जा रहा था।

तब अगर तुम्हे अपने आस्था व अधिकार की जानकारी नही थी तो अब भी तुम्हे अनजान बने रहना चाहिये।
क्योंकि
तुम्हारा यह नाटक मदारी के सॉप नेवले के लड़ाई वाले अंतहीन इंतजार की तरह सबके समझ मे आने लगा है। कम से कम तुम्हे मानवाधिकार, संवैधानिक अधिकार, देशभक्ति जैसे मुद्दे पर बोलने मे तो शर्म आनी चाहिये।
पर तुम तो बेशरम हो।
फिर
हमे तो इस देश के स्वाभिमान , सम्मान व संविधान से वास्तव मे प्यार है जिसके लिये हमे तुम्हारी तरह किसी विशेष मीडिया चैनल, किसी विशेष विद्वान किसी वैश्विक संगठन के प्रमाणपत्र की जरूरत नही।
जब भी
हमारे लिये सर्वोपरि हमारे देश के सम्मान, स्वाभिमान व संविधान पर ऑच आयेगी हम अपने को समर्पित कर के भी अपने स्तर व सामर्थ्य भर उसे बचाने का भरपूर प्रयास करेगें।
ये बात तुम अच्छी तरह समझ लो।

सुन रहे हो न तुम

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