प्रिय भइए,
मेरे समझ में आज तक ये नहीं आया कि भ्रस्ताचार कि जिस मुहीम कि सुरुआत अपने अन्ना जी ने किया है उससे लोगो के पेट में मरोर क्यूँ पैदा हो रही है, और इनमे कितने लोग तो ऐसे है जिन्हें अपने आप को इमानदार और भ्रस्ताचार मुक्त सुशासन देने का भ्रम है, कुछेक कतो समझ में आ रहा है कि हम नौ सौ चूहे खा चुके है, और अब बिल्ली के हज चलने कि तैयारी है, अब मै नाम तो नहीं लेना चाहता लेकिन मध्य प्रदेश के स्वनाम धन्य पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर मा० ठा० अमर सिंह , रीता जी जैसे लोगो को क्या कहें ? बहन मायावती जी को ये शिकायत है कि कमेटी में कोई दलित नहीं है, अरे बहिन जी , दलित भी इस देश कि आम रियाया है, बल्कि कहे तो वे ही सबसे ज्यादा भ्रस्ताचार से पीड़ित है, अगर देश में कोई भ्रस्ताचार मुक्ति कि आंधी इस क्रांति से आएगी तो उसमे सब का कल्याण होगा.
आश्चर्य तो तब होता है जब हमारे साउथ के बड़े बड़े राजनेता जो घोटाले कि चासनी में सरोबर है, वे तो इस जन अभियान में कुछ नहीं कहते या कहने का साहस नहीं कर पा रहे है, लेकिन अपने उत्तर के नेता खूब चिल्ला रहे है, कही ऐसा तो नहीं कि इन्हें डर हो कि चोर कि दाढ़ी में तिनका?
बहरहाल मुझे लगता है कि जन लोकपाल विधेयक में कुछ चीजे और डालनी चाहिए जिससे भ्रस्ताचार को उपर से नीचे ख़त्म किया जा सके उसके लिए मेरे समझ से एक तरीका ये होना चाहिए कि हिंदुस्तान का हर नागरिक अपने अपने सम्पतियों , आय के साधन का ब्यौरा लिखित रूप से दाखिल करे, ठीक उसी तरह जैसे इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल किया जाता है, और यह अनिवार्य एवं क़ानूनी हो , जिसके न पालन करने पे भरी जुरमाना हो. साथ ही साथ इस देश कि सारी चल अचल सम्पतियों का भी स्वामित्व का ब्यौरा जमा कराया जाये . बाद में इन दोनों अभिलेखों को आपस में एक दुसरे से सत्यापित करवा दिया जाये , मित्रो , सारी बेनामी संपतिया आपके सामने आ जाएँगी, साथ ही वे ढेर सारे भ्रस्ताचारी और घुसखोर भी , जो इस देश कि जड़ो को खोखला कर रहे है.
मै बार बार औरो से और खुद से ये सवाल पूछता हूँ, कि
- इस देश में एक बेरोजगार लड़की सदी होने के बाद गृहणी बनती है और ५-७ साल के अंदर ही उसके नाम उसके पास करोडो की सम्पति , कार, मकान सब कैसे हो जाता है? जबकि उसके पतिदेव समाज में अपने आप को इमानदार साबित करते रहते है?
- आज के समाज में एक सुब इंस्पेक्टर , जूनियर इंजीनियर, आर टी ओ , रजिस्ट्री आफिस , फ़ूड इंस्पेक्टर , सप्लाई इंस्पेक्टर जैसे पोस्टो क़ी तनख्वाह कितनी है, और इनके बीबी, बच्चो और रिश्तेदारों क़ी संपतियां करोडो में कैसे हो जाती है?
- आज अपने आप को एन जी ओ कहने वाले ज्यादातर संगठन या तो ट्रस्ट, या सोसाइटी के रूप में पंजीकृत है, ये सभी संगठन ईमानदारी से बताये क़ी उन्होंने अपने पंजीकरण कराते समय कितना पैसा घूस में दिया था? और अगर दिया तो उन्होंने उस समय विरोध क्यूँ नहीं किया?
चलिए मै बताये देता हूँ कि आज उत्तर प्रदेश में सोसायटी के रजिस्ट्रेसन में लगभग ४०००/ और ट्रस्ट के पंजीयन में ३०००/ रुपया गिनना पड़ता है, तो जब ये एन जी ओ अपने बुनियादी दौर में भ्रस्ताचार का विरोध नहीं कर पाते तो इनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है, जिसे इन्हें सिद्ध करना होगा.
बहरहाल एक अच्छी सुरुआत है , और आज कि जरुरत भी, हम सब को मिल के इस मुहीम में शामिल होना चाहिए, नहीं तो हम नदी किनारे खरे रह जायेंगे और नदी का पानी कहीं सूख जायेगा?
बात को भी दिग्विजय जी के तर्ज पे ख़तम करूँगा, कि जब हाथी चलता है तो वो रस्ते में ये नहीं देखता कि राह में कितने तिनके आये?
अब भैये , ये तो समझाने वाली बात है कि इस मुहीम में हठी कौन होगा और तिनका कौन बनेगा?
जय हिंद!
आप का ही,
व्योमेश चित्रवंश
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