मॉ वरूणा को समर्पित इस गीत की रचना प्रख्यात कवि पं० हरि राम द्विवेदी जी ने हमारी वरूणा अभियान के आग्रह पर वर्ष २००७ मे किया था।यह गीत वरूणा के महत्व के साथ काशी के संस्कृति को भी संप्रेषित करता है।
है जुड़ी वरूणा हमारी आस्था के गीत से
और काशी की संजोई साधना की रीति से
लोक के अनुराग की शुभरागिनी के प्रण सी
पीढीयो से गा रहा यह शहर वाराणसी।
राग रंजित कामनायें,रास रस की प्रीति से।
है जुड़ी........
पंचक्रोसी की परिधि मे जो तुम्हारा नाम है
है वही महिमा सनातन लोक का सम्मान है
प्रकृति को तुमने सँवारा है नरम नवनीत से
है बसी.....
गति तुम्हारी देख ऑखे आज डबडब हो रही
देख अवजल का मिलन निष्ठा बिचारी को रही
यह समय सहमा हुआ कुछ कह न सके अतीत से
है जुड़ी.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें