अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
शुक्रवार, 14 जून 2019
व्योमवार्ता/ बस यूँ ही मन में ख्याल आया: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 14जून2019, शुक्रवार
बदल रहे हैं वक्त के साथ नये जमाने के शौक,
आलमारी मे बंद किताबें हसरतों से निहारती है हमें।
-व्योमेश चित्रवंश, 14जून 2019, बनारस
http://chitravansh.blogspot.com
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