शनिवार, 23 सितंबर 2017

व्योमवार्ता : नही चाहिये ऐसी सरकार : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 23 सितंबर 2017, शनिवार

नही चाहिये ऐसी सरकार : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 23 सितंबर 2017, शनिवार

2014 मे मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने से पहले तक चारो तरफ खुशहाली थी। 

देश के किसान चार्टेड प्लेन से गर्मी की छुट्टिया बिताने स्विट्जरलैंड जाया करते थे।

समाज मैं इतना भाईचारा था की लोग दिन रात एक दूसरे को प्यार से पुचकारते हुए चलते थे l

सामाजिक सौहार्द उच्च स्तर​ का था , सारे लोग सेक्युलर थे , टोपी तिलक कोई दूर दूर तक नहीं जनता था l

आतंकवादी AK 47 का प्रयोग नहीं करते थे बल्कि अपनी देशविरोधी मांगे मनवाने के लिए अनशन किया करते थे।

देश मे विदेशी मुद्रा का भंडार इतना अधिक था की उस पैसे को रखने की जगह हमारे पास नहीं थी,
और हमारी सरकार सऊदी अरब और अमेरिका जैसे गरीब देशों को कर्ज दिया करती थी l

व्यापारी बहुत खुश था , उस पर कोई Tax नहीं लगता था l

देश की सारी सड़के 8 लेन की थी और 100 किमी से अधिक की दूरी लोग बुलेट ट्रैन से ही तय किया करते थे।

देश के हर घर में 24 घंटे बिजली आती थी।इन्वर्टर और जेनरेटर का नाम किसी को नहीं पता था।

देश के हर घर में RO के पानी की सप्लाई होती थी हर व्यक्ति के पास रोजगार था।

फिर एक दिन संघी लोगो ने EVM में गड़बड़ी कर, पूरे देश की मशीन सेट कर दी ,
सुना है ऐसा करने के लिए अमित शाह और मोदी ने मिस्टर इंडिया फिल्म में प्रयुक्त घड़ी का प्रयोग किया और इसलिए उनको कोई देख नहीं पाया।

इस प्रकार से देश की राजमाता और उनके राजवंश के इकलौते सुपुत्र के जन्मजात हक़ पर लात मर कर इन संघी लोगो ने सत्ता  हासिल की।

*देश की सत्ता एक गैर कुलीन  के हाथ आते ही सारे सुख वैभव नष्ट हो गये l

सड़को से अचानक 7-7 लेन गायब हो गए और बचे हुए 1 लेन मैं भी बड़े बड़े गड्ढे हो गए।

हजारों गांवों के बिजली के खंभे उखड़वा दिए गए। अब हर घर में 24 की जगह 4-5घंटे की सप्लाई होने लगी।

RO के पानी की सप्लाई रोक दी गई।

देश के किसान अचानक गरीब हो गए क्योंकि संघियो ने उनकी फसलों पर टिड्डियाँ  छोड़ दी थी।

देश के चार्टर्ड प्लेन अदृय्ष्य हो गए, जो बच गए वो मोदी ने अपने निजी प्रयोग मैं ले लिए।

इसके तुरंत बाद जनता के सारे पैसे स्विस अकाउंट मैं ट्रांसफर कर के उनको  भूखो मरने को मजबूर कर दिया गया ।*

*_हद तो तब हो गयी जब हमारे देश की सभ्य जनता से मोदी ने स्वछता की अपील की l

व्यापारियों पर अत्याचार का आलम ये की जो बेचारे 4-5 पुश्तों से एक पैसा टैक्स भरे बिना व्यापर कर रहे थे, उनको GST के नाम पर टैक्स देने को मजबूर कर दिया।

देश भर की योजनाओ को आधार कार्ड से जोड़कर करोड़ो रूपये की बचत की और जनता का बेईमानी कर खाने का बुनियादी हक़ भी छीन लिया गया।

तमाम सेक्युलर पत्रकार जो बेचारे किसी तरह गरीबी मैं सरकारी दारू और NGO के फण्ड पर अपना जीवन चला रहे थे ,
उनके धनस्रोत विदेशी NGO  बंद कर उनको भूखो मरने पर मजबूर कर दिया गया।_*

*ऐसी निर्दयी सरकार को पुनः चुने जाने का कोई हक़ नहीं l

मुझे मेरा पप्पू, लालू,ममता , और वही मनमोहन चाहिए , मुझे बापस वही लाखो करोड़ के घोटाले चाहिए।

नहीं चाहिए मुझे ऐसे संघी सरकार जो मेरे किसी भी प्रकार के चोरी करने के हक़ को नुक्सान पहुँचती हो।

  नहीं चाहिए बुलेट ट्रैन , उसकी पटरी पर शौच करने की सुविधा तक नहीं होती।

नहीं चाहिए हाइवेज जिन पर तेज गति से चलते हुए वाहन हमारे बच्चो को नुक्सान पंहुचा सके।

नहीं चाहिए ऐसी सरकार जो हमारे 32 -35 साल के नौजवानो को देश विरोधी नारे लगाने मात्र पर केस कर दे ।

नहीं चाहिए ऐसी सरकार जो आतंकवादीयों को पापीस्तान और म्यांमार में घुसकर  मारे,

नहीं चाहिए ऐसी सरकार जो कश्मीर के आतंकियों का लिस्ट बनाकर सफाया करवाएं।

नहीं चाहिए ऐसी सरकार जो हर गरीब महिलाओं को गैस का कनेक्शन दे।

नहीं चाहिए मुझे रेलवे स्टेशन पर ₹ 5/ltr में RO का पानी देने वाली सरकार मैं तो ₹20 वाली बोतल खरीदूंगा।*

_*नहीं चाहिए मोदी सरकार गो बैक। .. राजमाता एंड पप्पू कम  बैक। .. :*_
(बनारस, 23 सितंबर 2017, शनिवार)
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व्योमवार्ता : नही है जबाब मॉ के पास? : व्योमेश चित्रवंश ती डायरी,23 सितंबर 2016, शुक्रवार

नही है जबाब मॉ के पास: व्योमेश चित्रवंश की डायरी,23 सितंबर 2016,शुक्रवार

ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये हैं?
( एक कविता जो मुझे सोशल मीडिया से प्राप्त हुई है. जिसे पढने के बाद गला रूद्ध है,ऑखे बरबस ही डबडबा आई है. मन मे आक्रोश कि वीर जवानों के शहादत के बजाय ऐसी बोझिल मनस्थिति की कविताओं को हम कब तक पढ़ते रहेगें ?)
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ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये हैं?
माँ मेरा मन बात ये समझ ना पाये है,
ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये हैं?
पहले पापा मुन्ना मुन्ना कहते आते थे,
टॉफियाँ खिलोने साथ में भी लाते थे।
गोदी में उठा के खूब खिलखिलाते थे,
हाथ फेर सर पे प्यार भी जताते थे।
पर ना जाने आज क्यूँ वो चुप हो गए,
लगता है की खूब गहरी नींद सो गए।
नींद से पापा उठो मुन्ना बुलाये है,
ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये हैं?

फौजी अंकलों की भीड़ घर क्यूँ आई है,
पापा का सामान साथ में क्यूँ लाई है।
साथ में क्यूँ लाई है वो मेडलों के हार ,
आंख में आंसू क्यूँ सबके आते बार बार।
चाचा मामा दादा दादी चीखते है क्यूँ,
माँ मेरी बता वो सर को पीटते है क्यूँ।
गाँव क्यूँ शहीद पापा को बताये है,
ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये हैं?

माँ तू क्यों है इतना रोती ये बता मुझे,
होश क्यूँ हर पल है खोती ये बता मुझे।
माथे का सिन्दूर क्यूँ है दादी पोछती,
लाल चूड़ी हाथ में क्यूँ बुआ तोड़ती।
काले मोतियों की माला क्यूँ उतारी है,
क्या तुझे माँ हो गया समझना भारी है।
माँ तेरा ये रूप मुझे ना सुहाये है,
ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये है।
पापा कहाँ है जा रहे अब ये बताओ माँ,
चुपचाप से आंसू बहा के यूँ सताओ ना।
क्यूँ उनको सब उठा रहे हाथो को बांधकर,
जय हिन्द बोलते है क्यूँ कन्धों पे लादकर।
दादी खड़ी है क्यूँ भला आँचल को भींचकर,
आंसू क्यूँ बहे जा रहे है आँख मींचकर।
पापा की राह में क्यूँ फूल ये सजाये है,
ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये हैं?

क्यूँ लकड़ियों के बीच में पापा लिटाये है,
सब कह रहे है लेने उनको राम आये है।
पापा ये दादा कह रहे तुमको जलाऊँ मैं,
बोलो भला इस आग को कैसे लगाऊं मैं।
इस आग में समा के साथ छोड़ जाओगे,
आँखों में आंसू होंगे बहुत याद आओगे।
अब आया समझ माँ ने क्यूँ आँसू बहाये थे,
ओढ़ के तिरंगा पापा घर क्यूँ आये थे ?
(बनारस,23 सितंबर 2016, शुक्रवार)
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सोमवार, 18 सितंबर 2017

व्योमवार्ता / आखिर ये विग्यापन क्या संदेश देना चाहता है : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 17 सितंबर 2017, रविवार

आखिर ये विग्यापन क्या संदेश देना चाहता है : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 17 सितंबर 2017, रविवार

                अभी पिछले कुछ दिनों से टी वी के सभी चैंनलों पर Axis bank के होम फाइनेंस का विज्ञापन दिखाया जा रहा है।जिसमे एक कार में माँ बेटा बैठे हुए आपस मे बात कर रहे है, जिसमे माँ बेटे से उसकी शादी के पहले ही अलग मकान लेने कह रही है, बेटा वजह पूछता है तो माँ कहती है कि बहु आएगी तो उसे एडजस्ट करने में दिक्कत होगी, टोका टोकी होगी, इससे अच्छा तुम अभी से नया घर ले लो । और वह आज्ञाकारी बेटा तुरंत माँ की बात मान लेता है ।
           अब प्रश्न ये है कि यह विज्ञापन क्या संदेश दे रहा है समाज को ? ऐसे विज्ञापनों के द्वारा हमारे भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर करारी चोट की जा रही है। हर माँ बाप का सपना होता है कि बेटा जब बड़ा होगा तब शादी करके बहु को घर मे लाएंगे, बहुरानी का स्वागत करेंगे, समयानुसार जब नाती पोते होंगे तो उनकी खिलखिलाहट से घर गूंजेगा । दादा दादी की पदवी मिलेगी । पर इस विज्ञापन के धूर्त संदेश से युवाओं को माँ बाप से दूर करने की शिक्षा दी जा रही है ।
       लानत है ऐसे बैंक और उन एडवरटाइजिंग एजेंसी पर जो हमारे पारिवारिक संस्कारों और मूल्यों पर चोट कर रहे है । इन्हें तुरंत बंद करना चाहिए।
(बनारस,17 सितंबर 2017, रविवार)
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